स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863ई को हुआ था।उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रसिद्ध वकील से और इनकी माता धार्मिक महिला थी। स्वामी विवेकानंद के घर का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। नरेंद्र बचपन से ही भौतिक कुशाग्र और तीव्र बुद्धि के थे। उनकी माता को रामायण,महाभारत कथा सुनने का बहुत शौक था इसलिए कथाकार इनके घर आते ही रहते थे।घर का धार्मिक वातावरण होने के कारण नरेंद्र को भी परमात्मा को पाने की लालसा हुई।नरेंद्र का मन वेद,पुराण,उपनिषद,महाभारत रामायण आदि अनेक शास्त्रों को पढ़ने में अधिक लगता था।
नरेंद्र ने रामकृष्ण परमहंस की बहुत प्रशंसा सुनी थी और वे उनसे प्रभावित भी थे। नरेंद्र की स्वामी रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेट नवंबर 1881 में हुई थी और नरेंद्र स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्यों में से एक हो गए और वहीं से इनका नाम विवेकानंद पड़ा।
स्वामी विवेकानंद अपना संपूर्ण जीवन गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस की सेवा में समर्पित कर चुके थे। कैंसर की बीमारी के कारण उनका शरीर बहुत ही कमजोर हो चुका था।वह उन्होंने किसी की भी चिंता किए बिना गुरुदेव की सेवा में पूरा मन लगाया।16 अगस्त 1886 ईस्वी को उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस पंचतत्व में विलीन हो गये।
स्वामी विवेकानंद भगवा वस्त्र धारण करके संपूर्ण भारत की यात्रा करने के लिए पैदल ही निकल पड़े। जगह-जगह जाकर उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रचार प्रसार किया।
1893 ईसवी में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म परिषद का आयोजन हुआ सभी देशों से उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए लोग आए हुए थे और भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वामी विवेकानंद जी को चुना गया।उस समय भारतीयों को अमेरिका के लोग हीनभावना से देखते थे।वहां पर स्वामी विवेकानंद जी को बोलने का समय नहीं दिया जा रहा था।कुछ समय बाद उन्हें बोलने का समय मिला और जब वह बोले तो उनकी वचन आवाज और विचार सुनकर लोग मोहित हो गये और कोई यह नहीं चाहता था कि वे बोलना बंद करें वे बराबर बोलते रहे भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रचार प्रसार किया जो लोग भारतीयों को को हीन भावना से देखते थे उनकी दृष्टि में भी भारत को व उसकी संस्कृति को उच्च शिखर पर पहुंचाया। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गयी बातें
•एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारों बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
•एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
•उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
• जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरूरी है।
मृत्यु
भारत की सभ्यता और संस्कृति को उच्च शिखर पर पहुंचाने वाला यह महानायक 4 जुलाई 1902ई को पंचतत्व में विलीन हो गया।
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