स्वामी दयानंद सरस्वती
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824ई को गुजरात राज्य के टंकारा नामक स्थान पर ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम करसनजी लालजी तिवारी और माता का नाम यशोदाबाई था।उनके पिता एक अमीर समृद्ध व्यक्ति थे।स्वामी दयानंद सरस्वती जी के बचपन का नाम मूलशंकर था।एक बार उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने उनकी सोच ही बदल दी,यह घटना महाशिवरात्रि की है,जब उनके पिता ने शिवरात्रि के दिन उनसे विधि विधान से पूजा करने,उपवास करने और रात्रि जागरण करने के लिए कहा तब पूरा दिन उन्होंने उपवास किया और रात्रि में वे मंदिर में ही रात्रि जागरण के लिए रुक गये।जब उनके घर के सभी लोग सो गए फिर भी वह जागते रहे और उन्होंने सोचा कि भगवान शिव आएंगे और प्रसाद गृहण करेंगे फिर उन्होंने देखा की शिव जी को जो प्रसाद चढ़ाया गया था वह चूहे खा रहे हैं और यह देखकर वह बहुत आश्चर्य चकित हुए और उन्होंने सोचा कि ईश्वर जब स्वयं के चढ़ाए गए प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता तो वह मानवता की रक्षा कैसे करेगा तभी उनके मन में यह बात बैठ गई कि हमें ऐसे असहाय ईश्वर की उपासना नहीं करनी चाहिए।
घर का त्याग और ज्ञान प्राप्ति
इस घटना के बाद उनकी सोच ही बदल गयी और उनके जीवन में बहुत बदलाव आया फिर उन्होंने 21 वर्ष की आयु में घर छोड़कर सन्यासी जीवन ग्रहण किया। घर से निकल कर वे स्वामी विरजानंद के पास पहुंचे और गुरु विरजानंद से उन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और फिर वे वेदों के ज्ञान रूपी प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिए निकल पड़े।
आर्य समाज की स्थापना
इसके बाद 1875ई को उन्होंने मुंबई में आर्यसमाज की स्थापना। आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य मानव सेवा,परोपकार,कर्म एवं सामाजिक उन्नति था।
क्रांति में महान योगदान
स्वामी जी से बहुत से वीर क्रांतिकारी प्रभावित थे और स्वामीजी ने देश भ्रमण के अंग्रेजों के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया था और उन्हें यह पता चल चुका था कि देश के लोगों में अंग्रेजों के लिए बहुत ही आक्रोश है बस उन्हे अच्छे मार्गदर्शन की आवश्यकता है और उनके आक्रोश को नया रास्ता दिखाने की।उन्होंने बहुत से क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन किया और लोगों को एकजुट करना भी प्रारंभ कर दिया।उन्होंने लोगों को एकजुट करके एक क्रांति का रूप दिया और कहीं पर अगर सफलता हाथ नहीं लगती तो वे लोगों को निराश नहीं होने देते थे और यह विश्वास दिलाए रहते थे, बरसों से बसी किसी भी चीज को एक बार में नहीं उखाड़ा जा सकता बस प्रयास करते रहना चाहिए सफलता तो हाथ लगनी ही है।
सामाजिक कुरीतियों का विरोध
स्वामी दयानंद सरस्वती ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए बहुत से प्रयास किए।
• स्वामी जी ने जातिवाद,वर्णभेद को मिटाने के लिए बहुत से प्रयास किए और वर्ण भेद का विरोध भी किया।
• स्वामी जी ने नारी शिक्षा पर बल दिया और उन्होंने कहा कि समाज के विकास के लिए नारी का शिक्षित होना बहुत ही आवश्यक है।
• स्वामी जी ने बाल विवाह का बहुत विरोध किया और लोगों को इसके प्रति जागरूक भी किया। उन्होंने कहा बाल विवाह एक कुप्रथा है इससे मनुष्य निर्बल बनता है।
• उस समय विधवा स्त्रियों को बहुत ही समस्याओं का सामना करना पड़ता था तब स्वामी जी ने इस बात की घोर निंदा की और लोगों को परोपकार, मानवता का संदेश दिया और विधवा पुनर्विवाह के लिए अपना मत दिया और लोगों को जागरुक भी किया।
• स्वामी जी ने सती प्रथा का भी बहुत विरोध किया और मनुष्य को परोपकार की भावना का संदेश भी दिया।
मृत्यु
62 वर्ष की उम्र में स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए ।स्वामी जी के भोजन में कांच के टुकड़े मिला दिए गए थे,जिससे स्वामी जी का स्वास्थ्य खराब हो गया था।
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