सरदार भगत सिंह
सरदार भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907ई को लायलपुर जिले के बंगा नामक ग्राम में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान में है,इनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यापति था। भगत सिंह लाला लाजपत राय और करतार सिंह से बहुत ही अधिक प्रभावित थे। अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 से भगतसिंह के सोच पर बहुत ही अधिक प्रभाव पड़ा, उनकी सोच एक नई उद्देश्य की ओर मुड़ गई और उन्होंने पढ़ाई छोड़ कर वह गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया चौरी-चौरा कांड के फलस्वरुप गांधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया। इससे भगत सिंह बहुत अधिक हताश हुए और वह पंडित चंद्रशेखर आजाद द्वारा गठित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए,यह क्रांतिकारी संगठन था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद की सहायता से अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी और लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लिया।इसके बाद भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ मिलकर शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन के सरकारी खजाने को लूट कर घटना को अंजाम दिया और यह घटना काकोरी कांड नाम से प्रसिद्ध हुई। काकोरी कांड के बाद अंग्रेजी सरकार ने संगठन के सभी क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करना ढूंढना प्रारंभ कर दिया था इस कारण भगत सिंह वहां से निकलकर लाहौर अपने चाचा के पास पहुंच गये।
असेंबली में बम व जेल
अंग्रेजी सरकार को बढ़ती क्रांति की आग दिखाने और साम्राज्यवाद का विरोध करने के लिए के लिए भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका बम फेंकने के बाद भगत सिंह वहां से आसानी से निकल भी सकते थे लेकिन वह निकले नहीं उन्होंने भागने से साफ मना कर दिया और 'इंकलाब जिंदाबाद',' जय हिंद' के नारे लगाना प्रारंभ कर दिया और अपने साल लाए हुए पर्चे हवा में उछाल दिए और नारे लगाते रहे इसके बाद उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। भगत सिंह ने जेल में रहते हुए 'मैं नास्तिक क्यों हूं' नामक एक पुस्तक लिखी और अकाली व कीर्ति नामक दो अखबारों का संपादन भी किया।जेल में उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर लगभग 64 दिनों तक भूख हड़ताल की।
फाँसी की सजा
7 अक्टूबर 1930ई को अदालत में भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई। उनकी सजा को कम कराने के लिए पंडित चंद्रशेखर आजाद ने बहुत प्रयास किया लेकिन भगत सिंह ऐसा नहीं चाहते थे।23 मार्च 1931 को भगतसिंह,राजगुरु व सुखदेव को फांसी दे दी गई। भगत सिंह ने अपना पूरा जीवन देश पर ही न्योछावर कर दिया।अपने इस सराहनीयकार्य और देश प्रेम की भावना ने भगत सिंह को हमेशा के लिए लोगों के दिलों में अमर कर दिया। युवाओं के दिलों भगत सिंह हमेशा रहेंगे और एक प्रेरणा के तौर पर उनका मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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