पेशवा बालाजी बाजीराव बल्लाल भट्ट का इतिहास
पेशवा बालाजी बाजीराव का जन्म चित्तावन कुल के ब्राह्मण वंश के भट्ट परिवार में 18 अगस्त 1700 ई में हुआ था।उनके पिता का नाम बालाजी विश्वनाथ और माता का नाम राधाबाई था।इनके पिता बालाजी विश्वनाथ,छत्रपति शाहूजी के प्रथम पेशवा थे।बाजीराव बचपन से ही अपने पिता के साथ सैन्य अभियानों में अपने जाया करते थे। बचपन से ही बाजीराव को घुड़सवारी, तलवारबाजी,तीरंदाजी का बहुत शौक था। 1720 ईस्वी में जब बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हो गई तब बाजीराव की योग्यता और युद्ध कौशल देखकर छत्रपति शाहूजी ने बाजीराव को 20 वर्ष की उम्र में ही पेशवा नियुक्त कर दिया। बाजीराव को इतनी कम उम्र में पेशवा पद मिल जाने के कारण दरबार के कई मंत्री उनसे जलते थे। पेशवा बालाजी बाजीराव बहुत ही अच्छे घुड़सवार थे,घोड़े पर बैठकर भाला चलाने में वे माहिर थे।पेशवा बाजीराव ने उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक अपनी विजय पताका लहराई जिससे हर तरफ उनके नाम पर डंका बजने लगा।बाजीराव का नाम उन महान योद्धाओं में अग्रणी गिना जाता है जो कभी भी युद्ध नहीं हारे। पेशवा बाजीराव हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार करने में लगे थे। बाजीराव दिल्ली में मराठा ध्वज लहराना चाहते थे और मुगल साम्राज्य को जड़ से मिटा कर हिंदू साम्राज्य स्थापित करना चाहते थअटक से कटक तक केसरिया ध्वज लहराने का जो सपना छत्रपति शिवाजी ने देखा था,उसे पेशवा बालाजी बाजीराव ने काफी हद तक पूरा किया। पेशवा बालाजी बाजीराव अपने जीवन काल में 40 से ज्यादा युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे थे। नर्मदा पार सेना ले जाने वाला और मुगल सत्ता को दिल्ली जाकर करने वाला बाजीराव पहला योद्धा था। कई लोग बाजीराव को छत्रपति शिवाजी का ही अवतार मानते थे क्योंकि बाजीराव की रणनीति छत्रपति शिवाजी से मिलती-जुलती रहती थी। पेशवा बालाजी बाजीराव ने मालवा बयान में निजाम के खिलाफ अभियान में सिद्धियों के खिलाफ अभियान में गुजरात अभियान में दिल्ली अभियान में पुर्तगालियों के खिलाफ अभियान में सूझबूझ से विजय पताका लहरायी।
मुगल सल्तनत को चुनौती दिल्ली पर आक्रमण
पेशवा बालाजी बाजीराव ने 12 नवंबर 1736 को दिल्ली मार्च शुरू किया। मुगलों ने सादात खाँ को मराठाओ से लड़ने का जिम्मा सौंपा था। सादात खाँ डेढ़ लाख की सेना साथ लेकर निकल पड़ा लेकिन मराठों के पास इतनी सेना होने के कारण योजनाबद्ध तरीके से मराठो ने उनका रास्ता छोड़ दिया। सादात खाँ ने समझा कि मराठा डरकर मैदान छोड़ गए और भाग गए। उसने दिल्ली यह संदेश भिजवा दिया कि उसकी जीत हुई और मराठा मैदान छोड़कर भाग गए फिर वह मथुरा के लिए निकल पड़ा।योजना सफल हो जाने के बाद अब सबक सिखाने का समय आ गया था। देश में कोई भी ताकत उस समय नहीं थी जो सपने में भी दिल्ली पर आक्रमण करने की सोच सकें,ऐसे में बालाजी बाजीराव ने समय का सदुपयोग करके दिल्ली पर आक्रमण करने का दृढ़ निश्चय किया।
10 दिन की दूरी 500 घोड़ों के साथ 48 घंटे में तय करके दिल्ली पहुंचकर तालकटोरा स्टेडियम में अपना डेरा डाला। यह आक्रमण इतिहास में सबसे तेज माना जाने वाला आक्रमण था।इतिहास में बालाजी बाजीराव सबसे तेज आक्रमण करने वाले योद्धा के रूप में भी जाने जाते हैं।मुगल बादशाह रंगीला बाजीराव को इतना करीब देखकर घबरा गया और उसने स्वयं को महल में छुपा लिया और उसने 10000 सेना की टोली भेजी जिसे बाजीराव ने आसानी से पराजित कर दिया।यह दिन मराठों के लिए बहुत ही खुशी और गर्व का दिन था।बालाजी बाजीराव 3 दिन तक दिल्ली में रुके और मुगलों को अपनी ताकत का एहसास करा कर वापस पुणे लौट आए।
पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु
पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु के बारे में विद्वानों का एकमत नहीं है,किसी का मानना है कि उनकी मृत्यु मस्तानी की याद में हो गई थी और किसी का मानना है कि उनकी मृत्यु मालवा में ही नर्मदा नदी के किनारे रावेरखेड़ी में लू लगने के कारण हो गई थी ना कि मस्तानी की याद में। पेशवा बालाजी बाजीराव 28 अप्रैल 1740 ईसवी में 39 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
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